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मछलियाँ / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
उस की उम्र में
तब आया प्यार
जब उसके बच्चों के
प्यार करने की उम्र थी
तब जगे उसके नयनों में सपने
जब परिन्दों के
घर लौटने का वक़्त था
उसकी उम्र में
जब आया प्यार
तो उसे फ़िश-ऐकुयेरियम में
तैरती मछलियों पर बहुत तरस आया
फैंक दिया फ़र्श पर उसने
काँच का मर्तबान
मछलियों को आज़ाद करने के लिए
तड़प तड़प कर
मर गईं मछलियाँ
फ़र्श पर
पानी के बिना
नहीं जानती थी
वह बावरी
कि मछलियों को
आज़ाद करने के भ्रम में
उसने मछलियों पर
कितना जुल्म किया है ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा