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मछलियाँ / वीरा
Kavita Kosh से
तुम तो
डर रहे हो
अपने पैरों की
ठिठुरन के लिए
मछिलयों के लिए सोचो
जिन्होंने बर्फ की
मुर्दा खामोशी के नीचे
बचा रखी है
अपनी लगातार लड़ाई से
पानी की तरलता
तालाब में कल ही रात
बर्फ जमी है
मछिलयों की दुनिया के खिलाफ
और तुम हो
कि अपनी चमड़ी तक को
बचाये रखना चाहते हो
बर्फ के चक्रव्यूह से