भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मछली और पानी / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीतर तक
पूरी तरह
टूटने के बाद भी
मैं--
तुमसे नफ़रत नहीं कर पाऊँगी,
बिल्कुल उस मछली की तरह,
जिसे
पानी की ही कोई लहर
तट पर ला पटकती है
और वह
उसी पानी के लिए
तड़प-तड़प कर
दम तोड़ देती है,
मगर
किनारे की
रेत से
समझौता नहीं करती
कर ही नहीं पाती...