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मछली का यह कथन / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
'बाहर काँटे दिए जगत ने
भीतर दिए विधाता ने
अपना भाग्य-
कसकते काँटे
काँटों साथ तड़पना भी।'
-मछली का यह कथन,
कथन है अपना भी।
'जल में चल जल की प्राचीरें
हैं सब अपनी भाग्य-लकीरें
बाहर तनिक निकाली गर्दन
डालीं लहरों ने जंज़ीरें
अपना भाग्य-
'ये सारे जग के मछुआरे
खड़े हुए हैं जाल पसारे
हैं जिनकी व्यापार-वस्तु हम
वे क्या जानें दर्द हमारे
अपना भाग्या
हाट से नाते
इसको उसको बिकना भी।'
-मछली का यह कथन
कथन है अपना भी।