भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मछली / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
पानी में मछली हेलै छै
पंखी से पानी ठेलै छै।
कूदै फानै डुबकी मारै
बचकानी भी सेखी झारै।
जाड़ा गरमी सब झैलै छै
पानी में मछली हेलै छै।