मजदूर / आरती 'लोकेश'
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
भोर या रजनी हूँ मजबूर,
दूजा नाम मेरा रंक हुज़ूर
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
पाँव नंगे न कोई चप्पल,
हाथ मेरे में खाली पत्तल,
जो टुकड़े हैं, हैं बूर-बूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
तन के कपड़े हैं चिथड़े,
खून-पसीने से लिथड़े,
तन भी न ढकते भरपूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर।
क्षय हाड़ है क्षीण माँस,
दुर्गंध भरी है मेरी श्वास,
शरीर थक के चूर-चूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
स्त्री मेरी का दूना काम,
बोझ उठाती है अविराम,
चेहरे पर न हँसी न नूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
बच्चे के नन्हे कोमल हाथ,
जब देते मेरे काम में साथ,
तब भी न पड़ती पूर-पूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
रहता हूँ छप्पर टूटे,
आग तपे, मेह झरे,
शीत सरके कूर-क्रूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
दो जून गर मिले अन्न,
हाथ जोड़ बोलूँ प्रसन्न,
ईश्वर तू नहीं मुझसे दूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
बच्चों पर इतनी हो कृपा,
काँधे उनके बस्ता सजा,
पढ़ने को उसे मिले ज़रूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!
मिटे जीवन के दारुण दुख,
पा जाएँ वो भी कुछ सुख,
और कहें सिर उठा गरूर,
मैं मेहनतकश मैं मजदूर!