भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मजमा मिरे हिसार में सैलानियों का है / शाहिद मीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मजमा मिरे हिसार में सैलानियों का है
जंगल हूँ मेरा फ़र्ज़ निगह-बानियों का है

क़तरे गुरेज़ करने लगे रौशनाई के
क़िस्सा किसी के ख़ून की अरज़ानियों का है

ख़ुश-रंग पैरहन से बदन तो चमक उठे
लेकिन सवाल रूह की ताबानियों का है

रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है

सौ बस्तियाँ उजाड़िए दिल को न तोड़िए
ये संग-ए-मोहतरम कई पेशानियों का है

महफ़ूज रह सकेंगे सफ़ीने कहाँ तलक
मौजों में बंद ओ बस्त ही तुग़्यानियों का है

होती हैं दस्तयाब बड़ी मुष्किलों के बाद
‘शाहिद’ हयात नाम जिन आसानियों का है