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मजल रो हेलो !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
गेल्यां
गेलां स्यूं ही फंटै
जे बै नटै‘र
जींवती माखी गिटै
तो कोनी धिकै
आ अलूंणी झूठ,
कोई ढ़ाणी‘र
कोई तळाई
कोई बांठा‘र
कोई बोजां
कोई खेत‘र
कोई खळां
रूळ रूळा‘र
झक मार‘र
ढ़ळतै सूरज
पाछी पकड़ लेसी गेलो
कती‘क ताल करसी
सुण्यो अणसुण्यो
मंजल रो हेलो !