मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे / कांतिमोहन 'सोज़'

 मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।

जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम
ज़ालिम पंजे से लड़लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम
चाहे काले क़ानूनों का अम्बार लगाए जाओ तुम
कब ज़ुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम ।
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।

जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है ।
हम इनक़लाब के नारे से धरती-आकाश गुँजाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।

तुम बीती हुई कहानी हो अब अगला ज़माना अपना है
तुम एक भयानक सपना थे ये भोर सुहाना अपना है
जो कुछ भी दिखाई देता है जो कुछ भी सुनाई देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है ।
'वो दरिया झूमके उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे ।।

रचनाकाल : नवम्बर 1981

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