भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मज़ा तो कितना आएगा न / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुणा-भाग पूछूँ या पूछूँ उनसे जोड़-घटा
झट बतला देती है नानी थोड़ी आँख चढ़ा ।

केलकुलेटर क्या नानी ने छिपा रखा है भीतर !
छिपा रखा है क्या नानी ने भीतर कोई कम्प्यूटर !

खूब कहानियाँ हमें सुनाती खूब खिलाती खेल
अच्छों का वे मेल करातीं गन्दे जाएँ जेल ।

नानी से पूछा तो बोली एक पते की बात बताऊँ,
मुझ जैसा बनना चाहो तो एक सीक्रेट तुम्हें बताऊँ ।

बस, ध्यान से पढ़ना होगा, याद ध्यान से करना होगा
सुनना होगा बड़े ध्यान से, बड़े ध्यान से लिखना होगा ।

फिर तो तुम कम्प्यूटर जैसे झटपट-झटपट बतला दोगे
गिनती ऒर पहाड़े भी तुम फटफट-फटफट बतला दोगे ।

नई कहानी सुना-सुना कर मज़ा तो कितना आएगा न ?
सब देंगे तुमको शाबासी, मज़ा तो कितना आएगा न ?