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मठ-महाराज री बात / कुंदन माली

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म्हारी कई-अेक
आदतां में सूं
एक आ है क म्हूं
दुनिया रा कारबार
अेकटक देखूं
इण वास्तै
म्हनै घणी बातां री ठा है
किण नै किण री कितीक परवा है!
भासा रै मठां मांय
म्हाराज रै वास्तै
भासा, बत्ता सूं बत्तो
पेट्यौ हैं के पछै
उणां रै माचा री औदाणी है
अर जनता री खातर
कीड़ी-नगरो है इण रै अलावा
बाकी सब
धूड़-धाणी है
जिण जिण मौकै
म्हाराज री मुस्किलां री पंतग री डोर
ठैराव पै चालै
कीड़ी नगरै रौ कटोरौ
झट सूं हालै

सांच तो औ
के
म्हाराज रै वास्तै जग सेवा री बात
उठी वठै सूं ई झूंठी !