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मड़बो रोपल्हाँ, रोपल्हाँ चपा दोइ फूल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

माँ अपनी बेटी के लिए चिंता प्रकट कर रही है कि ससुराल में वह किसके साथ खेलगी, कौन उसकी देख-रेख करेगा, कौन उसके सोने पर जगाकर खिलायगा और कौन सांत्वना देगा? उसे उत्तर मिलता है- ‘वहाँ वह ननद के साथ खेलेगी, गोतनी उसकी देख-रेख करेगी, सास उठाकर खिलायगी और पति उसे सांत्वना देगा।
माँ को अपनी ममता के कारण बेटी की दिक्कतों का खयाल रहता है, लेकिन वह वहाँ की परिस्थिति के अनुरूप अपने को बना लेती है।

मड़बो<ref>एक प्रकार का पौधा, जिसकी पत्तियों से उत्कट गंध आती है, मड़ुआ-दौना</ref> रोपल्हाँ, रोपल्हाँ चंपा दोइ फूल हे।
ओहो बेटी सुनरी सासुर जाइती, कौने दौना पठैती हे।
गे माइ, बालो न सुनइ जमाय हे॥1॥
कौने सँगे बेटी खेलती धूपती, कौने लेती कोला काँख<ref>गोद में</ref> हे।
कौने उठायति भात खिलायती, कौने देती चित बोध हे।
गे माइ, बोलो न सुनइ जमाय हे॥2॥
ननदी सँगे बेटी खेलती धूपती, गोतनी लेली काला काँख हे।
सासु उठायति भात खिलायति, साँमी देत चित बोध हे।
गे माइ, बोलो न सुनइ जमाय हे॥2॥

शब्दार्थ
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