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मणिपुर की माँ / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

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नग्न हो खड़ी हो उठी मेरी मणिपुर की माँ
इसी माँ की दो आँखों से आँखें पाई हैं
शिखनख भाषा पाई है, पाया है – सा रे गा मा
नग्न हो खड़ी हो उठी मेरी मणिपुर की माँ ।

जो चाहे वही कर सकती है आर्मी अब
पुलिस, रास्ते पर कर्फ्यू, जल रहा चारमीनार
किसी ने कुछ कहा नहीं, कहने की बात भी नहीं
नग्न हो खड़ी हो उठी मेरी मणिपुर की माँ ।

आर्मी जीप चलती है गगन तले
आर्मी जीप कहती है ‘सारे जहाँ से’
आर्मी जीप में लड़की छटपटाती है
आर्मी जीप में बटन खोलना जारी है ।

वह लड़की यदि लौट भी आती है घर
वह लड़की यदि खुले गगन तले मरती है
पुलिस ने पोंछ दिया है उसका नाम
घर कहाँ है ? इम्फ़ाल से बाहर कोई गाँव !

यह सब घटता है रोज़
कहीं कोई तरुणी पड़ी हुई है
कहाँ उसकी और बहन लापता है
सिर्फ उनकी चुनरी झूलती है पेड़ पर ।

लेकिन आज जुलाई माह में पार हो गई विपद सीमा ।

उठ खड़ी हो जाओ मणिपुर की माँ !
उठ खड़ी होओ नग्न हो सभी स्तनदायिनी
पृथ्वी देखो, माँ की छाती में हैं कितनी उपशिराएँ !
 कैसी लगती है नग्न होने पर तुम्हारी अपनी माँ ?

आसाम राइफ़ल्स जैसे ही बन्द करता है गेट
जहाँ मैं था उसी माँ के तल पेट में
वहीँ से निकल आई एक गर्म गँगा
मणिपुर की माओं ने दी माँ को एक नई संज्ञा ।

जिस जगह आज चलती हैं माएँ नग्न हो जुलूसों में
स्थलनायक, जलनायक, तुम सब तब क्या कर रहे थे ?
यही सोच रहे हो न तुम्हारी माँ अब भी है दूसरे की माँ ?
जल चुकी है, जल चुकी है...

सब माओं के बीच रहने वाली वही अपनी बड़ी माँ ।

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर