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मण तरू पाँच इन्द्रि तसू साहा / कणहपा

मण तरू पाँच इन्द्रि तसू साहा।
आसा-बहल परत फल बाहा॥
वॉर गुरू वअणों कुठारे छिज्जअ।
कणह भणइ तरू पुणणइजअ॥
बढ़इ सो तरू सुभासुभपाणी।
छेवइ बिदुजन गुरूपरिमाणी॥
जो तरू छेवइ भेउ ण जाणइ।
सडि पड़िआँ मुठा ना भव माणइ॥
सुणणा तरूवर गऊण कुठार।
छेवई सो तरू मूल ण डाल॥

स्रोत:

  • "अंगिका भाषा और साहित्य" — बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
  • "हिंदी काव्य धारा" — महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन