मतलब-तलब हुआ है दिल ऐ शैख़ो-बरहमन
सूरत हरम की कैसी है, क्या शक्ले-दैर है
चाहा कि जूँ-हुबाब मैं देखूँ ये क़ायनात
खोले नयन तो और ही आलम की सैर है
मतलब-तलब हुआ है दिल ऐ शैख़ो-बरहमन
सूरत हरम की कैसी है, क्या शक्ले-दैर है
चाहा कि जूँ-हुबाब मैं देखूँ ये क़ायनात
खोले नयन तो और ही आलम की सैर है