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मतलब निकल है तो, पहचानते नहीं / साहिर लुधियानवी

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मतलब निकल गया है तो, पहचानते नहीं
यूँ जा रहे हैं जैसे हमें, जानते नहीं

अपनी गरज़ थी जब तो लिपटना क़बूल था
बाहों के दायरे में सिमटना क़बूल था
अब हम मना रहे हैं मगर मानते नहीं

हमने तुम्हें पसंद किया, क्या बुरा किया
रुतबा ही कुछ बलन्द किया क्या बुरा किया
हर इक गली की ख़ाक तो हम छानते नहीं

मुँह फेर कर न जाओ हमारे क़रीब से
मिलता है कोई चाहने वाला नसीब से
इस तरह आशिक़ों पे कमाँ तानते नहीं