भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत्स्य-मेखला / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
घाटपर बैसल निहारि लै छी रूप
भ’ गेल अछि वर्त्तित ज्योतिक स्वरूप
शान्त जलक नील शय्यापर चंचल
चित्रफलकपर अंकित-सन, अलस, थिर, थाकल
पड़लि छथि असंख्यो अप्सरा:
क्षुधा, भोग, आकांक्षा, आ रूपक अविकृत पियास
बैसल अछि घाटपर बगुला बनल-निराश
नहि टुटैत अछि मत्स्य-मेखला।
(मिथिला मिहिर: 31.12.61)