मत्स्य कन्या का जादू / राजेश्वर वशिष्ठ
उस सुबह रोज़ की तरह
आसमान से झाँक रहा था सूरज
हल्के बादल ज़रूर थे पर हवा तेज़ नहीं थी
फिर भी समुद्र में कल्लोल करने के लिए
इठला रही थीं किनारे पर बंधी नावें
पीटर और पोनम्मा सम्भाल रहे थे
अपना नायलोन से बना
मछली पकड़ने का जाल
वे हर रोज़ निकलते हैं इसी व्यवसाय-यात्रा पर !
अद्भुत कहानी है पीटर और पोनम्मा की
जिसे मैंने कल रात
सेण्ट जोसफ चर्च के पादरी से सुना
चलिए आपको भी सुनाता हूँ ।
मछुआरों के बच्चे नहीं खेलते गिल्ली-डण्डा
उन्हें पसन्द नहीं फुटबॉल या हॉकी
वे तो बस चलना सीखते ही
उतर पड़ते हैं समुद्र में
किशोर होते ही सिलने लगते हैं
नायलोन का फटा जाल
जिसे रोज़ घायल कर देती हैं
शैतान मछलियाँ
वयस्क होते ही मछुआरों के बच्चे
समुद्र पर दौड़ाने लगते हैं नावें
जैसे अमीरों के बच्चे
खुली सड़कों पर दौड़ाते हैं स्पोर्ट्स बाइक
वे भयभीत नहीं होते
काले, हरे, नीले उछलते जल से
वे जल से प्रेम करने लगते हैं ।
बाईस साल का था फिलिप,
लम्बा, सुते हुए शरीर का काला नौजवान
जिस पर मरती थीं
दर्जनों मछुआरों की अंगड़ाईयाँ तोड़ती बेटियाँ
पर उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ समुद्र से प्रेम था ।
सूर्योदय के साथ ही अपने दोस्त माईकेल को लेकर
वह निकल जाता था दूर गहरे समुद्र में
जहाँ अक्सर नहीं जाती थीं दूसरी नावें
समुद्र में फेंक कर जाल वह रोज़ बजाने लगता था
मैडम लुई से मिला माउथ-ऑर्गन
जिससे निकलती थीं नई-नई अनोखी धुनें ।
दहाड़ते समुद्र पर फेन की तरह ही
लिपट जाती थीं स्वर लहरियाँ
दसों दिशाओं से
लौट-लौट आती थीं स्वर-लहरियाँ
माईकेल बताता है
उनके जाल में दूर-दूर से
चली आती थीं मछलियाँ
जिन्हें वे उड़ेलते रहते थे अपनी नाव में
पर फिलिप बजाता ही रहता था माउथ-ऑर्गन
असल में उसे समुद्र पर नाचतीं
माउथ-ऑर्गन से निकली
जादुई धुनों से हो गया था प्यार ।
एक दिन फिलिप मस्त होकर बजा रहा था माउथ-ऑर्गन
माईकेल समेट रहा था मछलियों से भरा जाल
अचानक समुद्र से निकली
किसी अप्सरा-सी सुन्दर एक मत्स्य-कन्या
जिसने झाँका फिलिप की आँखों में
कुछ देर के लिए शरमा कर सूर्य छुप गया बादलों में
और वे दोनों किसी प्रेमी युगल की तरह
गायब हो गए उत्ताल समुद्र में ।
कितना चिल्लाया माईकेल पर लौटा नहीं फिलिप
उसे ही लौटना पड़ा
तपती दोपहरी में फिलिप के बिना ही ।
किसी ने विश्वास नहीं किया माईकेल पर
यहाँ तक की चर्च के पादरी ने भी,
कन्याकुमारी मन्दिर के पण्डों ने भी नहीं किया
जो अक्सर उन्हें मत्स्य-कन्याओं और जल-परियों की
कहानियाँ सुनाया करते थे ।
एक दिन चर्च के हॉल की खिड़की से झाँकते हुए
दोपहर की आँखें चौंधिया देने वाली चमक में
पोनम्मा ने देखी समुद्र पर नाचती एक जल-परी
जिसके साथ था
माउथ-ऑर्गन बजाता उसका साँवला-सा फिलिप।
बस उस दिन से पीटर और पोनम्मा
रोज़ सुबह-सुबह निकल पड़ते है अपना जाल लेकर
वे पकड़ना चाहते हैं उस मत्स्य-कन्या को
जिसने अपने प्रेम में
फिलिप को बन्दी बना लिया है ।
अगर मैं पोनम्मा के कहे पर विश्वास करूँ तो
वहाँ दूर समुद्र में
अब भी बज रहा है माउथ-ऑर्गन
बस फिलिप को छुपा लिया है
उस ख़ूबसूरत जादूगरनी ने !