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मत अब नियति भरोसे बैठो / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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मत अब नियति भरोसे बैठो
कर डालो जो भी करना है॥

देखो नया प्रभात हुआ है
खग बालाएं विहँस रही हैं।
उपवन में मोती बिखरे हैं
नन्ही कलियाँ चटक उठी हैं।

बीत चुकी है निशा अमा की
फूलों पर मोती झरना है।
मत अब नियति भरोसे बैठो
कर डालो जो कुछ करना है॥

रख हाथों पर हाथ अगर तुम
ऐसे ही अफसोस करोगे ,
बना योजनाएं डालोगे
किंतु न कुछ उद्योग करोगे ,

तो क्या नियति भरोसे रह कर
हाय हाय करते मरना है ?
मत अब नियति भरोसे बैठो
कर डालो जो कुछ करना है॥

नहीं जानते क्या गति में ही
जीवन का पर्याय छिपा है।
निष्क्रिय रहना आत्म हनन है
उम्मीदों का दीप जला है।

गलना नहीं तुम्हें रिस रिसकर
तुम्हें पतंगों सा जलना है।
मत अब नियति भरोसे बैठो
कर डालो जो भी करना है॥