मत करो उल्लेख उत्तर दिशा के अवसाद का / आन्ना अख़्मातवा
मत करो उल्लेख उत्तर दिशा के अवसाद का,
एक दुखद प्रसंग रूठे हुए मेरे भाग्य का।
यह सही है मांगलिक उत्सव दिवस है यह,
आज हम-तुम बिछुड़ जाएँ पर्व-क्षण है यह।
है नहीं परवाह, न चन्दा गगन से झाँके,
औ’ उषा यदि नहीं हमारे मिलन को आँके।
मैं तुम्हें उपहार दूँगी आज, सुनो प्रिय,
अरे जैसा कभी देखा नहीं होगा फिर मधुर।
भेंट यह बल खा रही सी नाचती काया,
दृश्य जो निर्झर के दर्पण में था घिर आया।
दृष्टि है वह भेंट जिसको थामते तारे,
सतत जिससे झाँकती हूँ गगन में प्यारे।
भेंट है वाणी अधूरी और सिहरती सी,
कभी जो थी युवा, ताज़ा लोच भरती सी।
लो मेरे उपहार, जो वह श्रवण सुख देंगे,
फुसफुसाहट पंछियों की आप सुन लेंगे।
ताकि अक्तूबर के दिन की नमी
मई के मौसम से सुखद हो बढ़कर,
कम से कम मुझे याद करना, मेरे प्यारे, प्रियतम
जब तक पहली बर्फ़ गिरे धरती पर।
मूल रूसी से अनुवाद : रामनाथ व्यास ’परिकर’
और अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Анна Ахматова
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Не стращай меня грозной судьбой
И великою северной скукой.
Нынче праздник наш первый с тобой,
И зовут этот праздник — разлукой.
Ничего, что не встретим зарю,
Что луна не блуждала над нами,
Я сегодня тебя одарю
Небывалыми в мире дарами:
Отраженьем моим на воде
В час, как речке вечерней не спится,
Взглядом тем, что падучей звезде
Не помог в небеса возвратиться,
Эхом голоса, что изнемог,
А тогда был и свежий, и летний, —
Чтоб ты слышать без трепета мог
Воронья подмосковного сплетни.
Чтобы сырость октябрьского дня
Стала слаще, чем майская нега...
Вспоминай же, мой ангел, меня,
Вспоминай хоть до первого снега.
1959