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मत गँवाया करो / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
मान अपमान को मत भुलाया करो ।
यूँ मिले मान तुम मत गँवाया करो ।
दाग अच्छे न कोई कहीं हो कभी,
बदनुमा दाग बनकर न छाया करो ।
सुर्खियों में रहें द्रोहियों की तरह,
द्रोह का भाव मन में न लाया करो ।
दल दलों में फँसा राष्ट्र कैसे बचे,
ध्यान चिंतन सतत तुम जगाया करो ।
अस्मिता देश की है स्वयं हाथ में,
दाँव पर मान को मत लगाया करो ।
राजनीतिक प्रबुद्धों उठो देश के,
उठ रहीं भ्रांतियों को मिटाया करो ।
राह आसान हो शांति से प्रेम से,
द्वंद्व मतभेद यों मत बढा़या करो ।