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मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन / शाह मुबारक 'आबरू'
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मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
आ जुदाई ख़ूब नहीं मिल जा सजन.
बे-दिलों की उज़्र-ख़्वाही मान ले
जो कि होना था सो हो गुज़रा सजन.
तुम सिवा हम कूँ कहीं जागे नहीं
पस लड़ो मत हम सेती बेजा सजन.
मर गए ग़म सीं तुम्हारे हम पिया
कब तलक ये ख़ून-ए-ग़म खाना सजन.
जो लगे अब काटने इख़्लास के
क्या यही था प्यार का समरा सजन.
छोड़ तुम कूँ और किस सीं हम मिलें
कौन है दुनिया में कोई तुम सा सजन.
पाँव पड़ता हूँ तुम्हारे रहम को
बात मेरी मान ले हा हा सजन.
तंग रहना कब तलक गुंचे की तरह
फूल के मानिंद टुक खिल जा सजन.
‘आबरू’ कूँ खो के पछताओगे तुम
हम को लाज़िम है इता कहना सजन.