भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मत छिपाओ चाँद को फिर तीरगी बढ़ जायेगी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत छिपाओ चाँद को फिर तीरगी बढ़ जायेगी
रोक लो तनहाईयों को बेखुदी बढ़ जायेगी

डोलतीं क़ासिद हवाएँ खुशबुओं के ख़त लिये
बाँच दे बागे सबा दिल की खुशी बढ़ जायेगी

है सितारों की चढ़ी बारात दूल्हा चाँद है
बदलियाँ घूँघट उठा दें चाँदनी बढ़ जायेगी

रह गयी है जिंदगी में अब फ़क़त तन्हाईयाँ
आप आ जायें तो थोड़ी जिंदगी बढ़ जायेगी

बल्ब बिजली के चमकते खूबसूरत हैं मगर
दीप मिट्टी के जला दो रौशनी बढ़ जायेगी

नींद की परियाँ सजा देतीं पलक पर ख़्वाब को
वरना दुनियाँ में बड़ी दीवानगी बढ़ जायेगी

मत तमाशा तुम बनो रक्खो निगाहों में हया
ग़र ज़रा झुक कर चलोगी सादगी बढ़ जायेगी