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मत निराश हो, मत घबरा रे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)
 
मत निराश हो, मत घबरा रे! मत कर मनमें जरा विषाद।
जा चरणोंमें सहज सुहृदके, पा ले उनका कृपा-प्रसाद॥
दीनोंको अपनाना-सुखी बनाना उनका सहज स्वभाव।
पतितोंको पावन करनेका उनके मन रहता नित चाव॥
रो-रोकर कह दयासिन्धुसे-’करो नाथ! मेरा उद्धार।
हरो दुःख-दुर्भाग्य-दोष-दुष्कर्म, दुष्ट-‌आग्रह, कुविचार’॥
त्रिबिध-ताप-हर हर लेंगे हरि, सुनते ही तेरा चीत्कार।
तुझे स्थान देंगे निज दासों में वे करुणा-पारावार॥