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मत पूछिए, कैसे-कैसे ख़्वाब लिए घूमता है वह / सांवर दइया
Kavita Kosh से
मत पूछिए, कैसे-कैसे ख़्वाब लिए घूमता है वह।
सब इतना जानता हूं, एक आग लिए घूमता है वह।
सलीब, ज़हर, फांसी, गोली जी भरकर दो दुनिया वालो,
छेनियों में न कटने वाली सांस लिए घूमता है वह!
मज़हबी किताबों से खौलते खून वालो, ग़ौर करो,
कौन है, आदमी होने का दाग़ लिए घूमता है वह।
किस तरह, किस वजह गिरा है आदमी का खून बताइए,
चुकता करके ही रहेगा, हिसाब लिए घूमता है वह।
कारण तो बताइए, बेवजह क्यों हैं यहां पाबंदियां,
सांसों को मुक्त करो! यह आवाज लिए घूमता है वह।