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मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते / अज्ञेय
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मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते!
स्वरगत यदि हो मेरा मौन, तुम्हारे प्राण नहीं सह सकते!
देखो, शिरा-शिरा है सिहरी-बहा ले चली अनुभवी-लहरी-
अन्तर्मुख कर सब संज्ञाएँ, तुम्हीं क्यों न उस में बह सकते?
छू कर ही क्या जाता जाना दो प्राणों का ताना-बाना?
नीरवता का खर-स्वर सुनते, मौन नहीं क्या तुम रह सकते?
मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते!
डलहौजी, अगस्त, 1934