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मत मनाओ शोक प्यारी रात तुम / आदर्श सिंह 'निखिल'

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मत मनाओ शोक प्यारी रात तुम।

श्यामवर्णी घूंघटों में उम्र कटना पाप ही है
चाँद के यौवन सरीखा बोझ भी अभिशाप ही है
और इस पर भी सितारों का उधम निर्बाध होना
शबनमी कुछ आंसुओं से व्योम का तुमको भिगोना
सह रही हो सब निठुर आघात तुम

टूटती हैं सब प्रथाएं जब तुम्हारी छांव पातीं
वेदनाएं जो छिपी आगोश आकर ठाँव पातीं
तुम सहस्रों वेदनाओं का करुण क्रंदन रही हो
लांछन कितने लगें जग जानता है तुम सही हो
हों बुरे मानस मगर बदजात तुम

सोचता हूं याचना कर लूं कभी दिनमान से मैं
मांग लूं कुछ लालिमा उसकी अटल पहचान से मैं
घोल दूँ लाकर तुम्हारे स्याह धूमिल आवरण में
रोप दूँ विश्वास थोड़ा सा कहीं अंतः करण में
तब न होगी शून्य या निर्वात तुम