मत रोकऽ, मत करऽ बात / सतीश मिश्रा
मत रोकऽ, मत करऽ बात अब, रात इहइँ पर उतर न जाए
बेर डुबे से पहिले हमरा फुतलुंगी पर चढ जान हे।
शुरू भेल जतरा तखनी से अब ले कुक्कुर भूँक रहल हे
आँख-कान वाचाल रहल, पर हम्मर बानी मुक रहल हे
नरभक्षी सब जीव-जन्तु, सब विषधर पथ में तनल खड़ा हथ
सबके जबड़ा चूर-चार के अपन राह पर बढ़ जान हे।
बेर डुबे से पहिले हमरा फुतलुंगी पर चढ जान हे।
जुग से मकड़ी झुंड बाँध के जाली पर जाली बुनले हे
ऊ जाली में फँसल भोर के किरन बेअक्खर सिर धुनले हे
हमरा ला जे बनल किरन, से हमरा भिर चल के आ जाए
ई खातिर सब जाल नोच के, मकड़ी के मुँह मढ़ जाना है
बेर डुबे से पहिले हमरा फुतलुंगी पर चढ जान हे।
करीं भरोसा हम जेकरा पर, सेही हमरा आन्हर समझे
सच कहलक हे आदी के रस-स्वाद न कहिओ बानर समझे
मत समझे, पर अपना लागी अपन आँख अब खोल देली हम
हमरा तो अब ककहारा से संविधान तक पढ़ जाना हे।
बेर डुबे से पहिले हमरा फुतलुंगी पर चढ जान हे।
हम्मर सूरुज, चान हमर हे, ई जमीन-असमान हमर हे
गुरुग्रन्थ बाइबिल हे हम्मर, हम्मर बेद, कुरान हमर हे
आदि काल के अच्छर ही हम, शब्द-पंक्ति बन के बहराएल-
जन-मन के पन्ना-पन्ना पर नया कहानी गढ़ जाना हे।
बेर डुबे से पहिले हमरा फुतलुंगी पर चढ जान हे।