भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मदद / विमल कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर सकता हूँ
तुम्हारी मदद
चिता पर जलते हुए भी
मेरा धुआँ तुम्हारे बच्चों के लिए काजल बनकर काम आ जाए
मेरी आग से
पक जाए तुम्हारे घर का खाना
मेरी राख से चमकने लगे रसोई घर में
तुम्हारे बर्तन ।

कर सकता हूँ
तुम्हारी मदद
क़ब्र में रहकर
उसकी ईंट काम आ जाए
जब मकान बनाते हुए तुम्हें पड़े ज़रूरत उसकी
ताबूत से तुम बना लो
अपने लिए कोई मेज़ कोई कुर्सी ।

हो सकता है
तुम्हें अच्छा न लगे
एक मरे हुए आदमी के सामान से इस तरह
कोई चीज़ बनाना
पर मैं कर सकता हूँ
तुम्हारी मदद
हर क़दम पर
भले ही मुझसे चला न जाता हो
ठीक से दिखाई न देता हो
मोतियाबिंद के कारण

तुम अगर तूफ़ान में घिर गए
तुम्हारी नाव फँस गई लहर में
तुम्हारा घोंसला उजड़ गया बारिश में
तो मैं मदद के लिए
रहूँगा हमेशा तैयार

जब तुम एक फूल की तरह मुरझाने लगो
सूखने लगो एक नदी की तरह
ठूँठ होने लगो
एक पेड़ की तरह
तो मैं तुम्हें मिलूँगा हर तरह की मदद के लिए
बशर्ते तमाम झगड़ों और नाराजगी के बाद
तुम्हारा एक ख़त आ जाए मेरे पास
या फिर कोई यह बता दे
कि तुम इन दिनों गहरी मुसीबत में हो ।

मैं तुम्हारी मदद
करूँगा
पर तुम्हारे लिए नहीं
मनुष्यता को बचाने के लिए
धरती पर
बस एक बार
तुम यदि
कर लेना संकट में
इस बुरे आदमी को
जो गुस्ताख़ी करता रहा
तुम्हें चाहने की ज़िन्दगी भर ।