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मदह हज़रत सलीम चिश्ती / नज़ीर अकबराबादी

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हैं दो जहां के सुल्तां<ref>बादशाह</ref> हज़रत सलीम चिश्ती।
आलम के दीनों-ईमां हज़रत सलीम चिश्ती।
सर दफ़त्रे मुसलमां हज़रत सलीम चिश्ती।
मकबूले-ख़ासे-यजदां<ref>ख़ुदा</ref> हज़रत सलीम चिश्ती।
सरदार-मुल्के-इर्फ़ा हज़रत सलीम चिश्ती॥1॥

बुर्जे़ असद<ref>सिंह राशि</ref> की रौनक अर्शे बरी<ref>ऊंचे आसमान</ref> के तारे।
गुलज़ारे दीं के गुलबन<ref>गुलाब का पौधा</ref> अल्लाह के संवारे।
यह बात जानो दिल से कहते हैं सब पुकारे।
तुम वह वली हो बरहक़<ref>सच</ref> जो फैज़<ref>उपकार</ref> से तुम्हारे।
आलम है बाग़ो बुस्तां<ref>बाग़</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥2॥

शाहों के बादशाह हो बा-ताज बा-लिवा<ref>झंडा सहित</ref> हो।
और क़िबलए सफा<ref>पवित्र</ref> हो और काबए ज़िया<ref>रोशनी</ref> हो।
ख़लक़त<ref>दुनियां</ref> के रहनुमा<ref>राह दिखाने वाले</ref> हो दुनिया के मुक़्तदा<ref>दुनियां के पेशवा, इमाम हो</ref> हो।
तुम साहिबे सख़ा<ref>दानी</ref> हो महबूबे किब्रिया<ref>ख़ुदा</ref> हो।
है तुमसे जेबे इमकां<ref>मुमकिन होना, संभव होना</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥3॥

शाहो<ref>बादशाह</ref> गदा<ref>भिखारी</ref> हैं ताबेअ़<ref>मातहत</ref> सब तेरी मुमलिकत<ref>मुल्क</ref> के।
लायक तुम्हीं हो शाहा<ref>बादशाह</ref> इस क़द्रो<ref>आदर</ref>-मंज़िलत<ref>रुतबा</ref> के।
परवर्दा<ref>पाले हुए</ref> हैं तुम्हारे सब ख़्वान-मुकर्मत<ref>बुजुर्गी</ref> के।
शाहा<ref>बादशाह</ref> शरफ़<ref>बुजुर्गी</ref> तो बख़्शी<ref>वेतन बांटने वाला अफसर</ref> ख़ालिक की सल्तनत के।
और तुम हो मीर-सामां हज़रत सलीम चिश्ती॥4॥

है नाम पाक तेरा मशहूर शहरी वन में।
करती हैं याद तुमको यह जानें हैं जो तन में।
हैं ख़ुल्क<ref>आदत</ref> की तुम्हारे ख़शबू गुलो-समन<ref>चमेली का फूल</ref> में।
खि़दमत में हैं तुम्हारी फ़िर्दोस के चमन में।
जन्नत के हूरो<ref>स्वर्ग की अप्सरा</ref> गिल्मां<ref>स्वर्ग के लड़के</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥5॥

काबा<ref>खु़दा का घर जो मक्का शरीफ़ में है</ref> समझ के अपना मुश्ताक़<ref>अभिलाषी</ref> तेरे दर<ref>दरवाज़ा</ref> को।
करते हैं आ ज़ियारत<ref>मिलना, दर्शन करना</ref> दिल से झुकाके सर को।
औसाफ़<ref>खूबियाँ</ref> तेरे हर दम पाते हैं सीमो ज़र<ref>चांदी सोना</ref> को।
पढ़ते हैं मदह<ref>स्तुति</ref> तेरी गुलशन में हर सहर<ref>सुबह</ref> को।
हो बुलबुले खु़शइलहाँ<ref>अच्छे स्वर वाली</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥6॥

है सल्तनत जहां की सब तेरे ज़ेरे-फ़र्मा<ref>आज्ञाकारी</ref>।
चाकर हैं तेरे दर के फ़ग़फूर<ref>चीनी शासकों की उपाधियाँ बुजुर्ग</ref> और ख़ाका<ref>चीनी शासकों की उपाधियाँ बुजुर्ग</ref>।
ख़्वाने करम<ref>दस्तर ख़्वान, खाने का कपड़ा जिस पर किसी की रोकटोक न हो</ref> पे तेरे है ख़ल्क़<ref>दुनिया, सृष्टि</ref> सारी मेहमां।
हैं हुक्म में तुम्हारे जिन्नो-परीओं-इन्सां।
हो वक़्त के सुलेमां हज़रत सलीम चिश्ती॥7॥

तुम सबसे हो मुअज़्ज़म<ref>इज्जत वाला</ref> और सब से हो मुकर्रम<ref>प्रतिष्ठित</ref>।
ख़ल्क़त<ref>दुनिया</ref> हुई तुम्हारी सब नूर से मुजस्सम<ref>शरीरदार</ref>।
और खू़बियां जहां की तुम पर हुई मुसल्लम<ref>मानी गई, पूर्ण</ref>।
अब्रे<ref>कृपा के बादल</ref> करम से तेरे दायम<ref>सदैव</ref> हैं सब्जो-खु़र्रम<ref>प्रसन्न</ref>।
आलम<ref>दुनियां</ref> का सब गुलिस्तां<ref>बाग</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥8॥

पुश्त<ref>पीठ</ref> पनाह हो तुम हर एक गदाओ<ref>भिखारी व बादशाह</ref> शह के।
मोहताज हैं तुम्हारी एक लुत्फ़ की निगह के।
मंज़िल पे आके पहुंचे सालिक<ref>राह चलने वाला</ref> तुम्हारी रह के।
ख़ाके क़दम तुम्हारी दर चश्म महरो मह<ref>सूर्य-चन्द्र</ref> के।
हो रोशनी के सामां हज़रत सलीम चिश्ती॥9॥

चश्मो चिराग़ हो तुम अब जुम्ला<ref>समग्र</ref> मोमिनी<ref>ईमान वाले</ref> के।
रौशन हैं तुमसे पर्दे सब आस्मां ज़मीं के।
बेशक ज़ियाये<ref>रोशनी</ref> दिल हो हर साहिबे यक़ीं के।
ज़र्रा<ref>कण</ref> नहीं तफ़ावुत<ref>फ़र्क</ref> तुम आस्मां हो दीं के।
हो आफ़ताबे रख़्शां<ref>चमकता हुआ सूरज</ref> हज़रत सलीम चिश्ती॥10॥

आलम है सब मुअत्तर<ref>खुशबूदार</ref> तेरे करम<ref>दया, कृपा</ref> की बू<ref>खुशबू</ref> से।
हुर्मत<ref>इज़्ज़त</ref> है दोस्तों को हज़रत तुम्हारी रू<ref>मुंह, रुख़</ref> से।
यह चाहता हूं अब मैं सौ दिल की आरजू से।
रखियो ”नज़ीर“ को तुम दो जग में आबरू से।
ऐ मूजिदे<ref>नई चीज़ पैदा करने वाला</ref> हर-एहसां हज़रत सलीम चिश्ती॥11॥

शब्दार्थ
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