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मदारी एैलै (बाल कविता) / प्रदीप प्रभात
Kavita Kosh से
देखोॅ एक मदारी एैलै,
साथेॅ दू जम्बूरा एैलै।
तीन मिनट तोय डमरू बजैल कै,
चार गॉव मेॅ खेल देखैलकै।
भरी-भरी झोरा चौॅर लानलकै,
रातीं सबनें मिली-जुली खैलकै।
गोला मुँह सेॅ पाँच निकालै,
हाथ मेॅ लै छोॅ-छोॅ बार उछालै।
सात आम रोॅ गाछ लगैलकै,
ओकरा सेॅ पेड़ा आठ बनैलकै।
बंदर केॅ नौ बार नचैलकै,
दस मिनट रोॅ खेल देखैलकै।
घोड़ा पर चढ़ै मदारी,
खैलकै सबनेॅ तीन-तीन थारीॅ।
हाथी साईकिल चलाबै छै,
सवारी जेकरोॅ बन्दर छै।