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मद से कंपित मदिराधर स्मित / सुमित्रानंदन पंत

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मद से कंपित मदिराधर स्मित
साक़ी, पी दिन रात!
भुला दे जग के अखिल अभाव,
सुरा प्रेयसि से कर न दुराव!
जीवन सागर, साक़ी, दुस्तर,
दुख की झंझावात
उठे यदि, तू निज डगमग पाँव
बढ़ा दे, सुरा नूह की नाव!