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मधुमय मानस सर पीड़ा के राजहंस पलते / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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मधुमय मानस सर पीड़ा के राजहंस पलते॥

मन भावों के मृदु उपवन में
ये विहार करते।
चुनते आँसू के मोती दृग से
प्रतिपल झरते।

आशा दीप युगल नयनों में निशि वासर जलते।
मधुमय मानस सर पीड़ा के राजहंस पलते॥

बाधा - शूलों ने अंतर पर
छाले डाल दिये
उर मंजूषा पीर सहेजी
ताले डाल दिये।

नींद उड़ी नैनों से सपने हैं निज कर मलते।
मधुमय मानस सर पीड़ा के राजहंस पलते॥

साँझ ढले नैराश्य निशा
तन मन पर छा जाती।
भोर किरण के साथ आस
फिर सम्मुख आ जाती।

आगत गत क्षण हैं कितना पागल मन को छलते।
मधुमय मानस सर पीड़ा के राजहंस पलते॥