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मधुर साक़ी, भर दे मधु पात्र / सुमित्रानंदन पंत

मधुर साक़ी, भर दे मधुपात्र,
प्रणय ज्वाला से उर का पात्र!
सुरा ही जीवन का आधार,
मर्त्य हम, केवल क्षर मृन्मात्र!
पुष्प के प्याले भर भर आज
लुटाता यौवन मधु ऋतु राज,
उमर तज भजन, यजन, उपचार;
भजन से ईश्वर को क्या काज!
गंधवह बहता हो जब मंद,
गा रहा हो कल सरिता नीर,
अधर मधु पीकर रह स्वछन्द,
भजन हित हो मत व्यर्थ अधीर!