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मधुशाला में लोहू पीना है मना / विमल राजस्थानी

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कीचड़ पर कीचड़ उछालना व्यर्थ है
मिट्टी पर मिट्टी क्या रखती अर्थ है
भूल, भूल रे भूतकाल को भूल जा
ज्योति-ताल की इन लहरों पर झूल जा
वर्तमान के चप्पू की गह बाँह रे
कह दे तिमिर-पाल को-उड़ जा, कूल जा
फेंक अश्रु के तुहिनों वाले जाल को
बुझा-बुझा इन प्रतिशोधों की ज्वाल को

रूप-लपट से रोम-रोम झुलसा, मगर-
शेष प्राण का नीड़ जलाना व्यर्थ है
कीचड़ पर कीचड़ उछालना व्यर्थ है

आँसू में इस व्यथा-सुधा को ढाल दे
शब्दों में भर करुण-कथा को, ताल दे
मधुशाला में लोहू पीना है मना
आहें भर, रो-रोकर जीना है मना
सारी पीर उँडेल सुरीले गान में
यह काँटा तोक चुभा हुआ है प्राण में

ला पंखुरियाँ किसी अछूते फूल की
काँटे से काँटा निकालना व्यर्थ है
कीचड़ पर कीचड़ उछालना व्यर्थ है

-1.12.1974