मधुशाला / भाग 11 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
कलकोॅ पर विश्वास करलकै
कहियो की पीयैवाला,
हुएॅ सकेॅ कल हाथे जड़ ऊ
जैसें आज उठै प्याला,
आय हाथ में ऐलोॅ, गेलै,
कलकोॅ कोॅन भरोसोॅ छै;
कलकोॅ के मधुशाला चाहै
काल कुटिल रोॅ मधुशाला ।61
औसर जों मिललोॅ छै आय तेॅ
छकबै जीह भरी हाला,
मौका जों मिललोॅ छै आय तेॅ
ढारी लांै जी भर प्याला,
छेड़-छाड़ अपनोॅ साकी सें
खूब अघैलोॅ आय करौं,
एक्के दाफी तेॅ मिलना छै
जीवन रोॅ ई मधुशाला ।62
प्रेयसि, आय बनाबोॅ जीत्तोॅ
अपनोॅ ठोरोॅ के प्याला,
भरोॅ-भरोॅ टापेटुप यैमें
यौवन-मधुरस के हाला,
फेनू हमरोॅ ठोरोॅ पर दै
भूली जैयोॅ हटबै लेॅ,
बेछुट पीयैवाला बनियौं
खुलेॅ प्रेम रोॅ मधुशाला ।63
सुमुखि, तोरोॅ सुन्दर मुखड़े
हमरा लेॅ कंचन-प्याला,
छलकै जै में माणिक केरोॅ
रूप - मधुर - मादक - हाला,
साकी बनौं नै खाली हम्में
पीयैवाला भी हम्मीं,
जै ठां बैठौं हम्में-तोहें
वहीं बुझोॅ बस मधुशाला ।64
मधु पिलाय केॅ हमरा दू दिन
उबलोॅ छै साकीबाला,
भरै, भरी खिसकाय देलखौं
हमरोॅ दिश आगू प्याला,
नाज, अदा, अन्दाजोॅ सें ऊ
हाय पिलैबोॅ खतमैलै,
आबेॅ करै, करै बस खाली
फर्जअदाई मधुशाला ।65
छोटोॅ रं जिनगी में कत्तेॅ
प्यार करौं, पीयौं हाला,
आबै के साथैं दुनियाँ में
कहलैलौं जावैवाला,
स्वागत साथें विदागिरी के
होतें देखौं तैयारी,
बंद हुएॅ लगलै खुलथैं ही
हमरोॅ जिनगी-मधुशाला ।66