मधुशाला / भाग 12 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
की पीबोॅ, निद्र्वन्द्व बनी नै
लेलकोॅ प्याला पर प्याला,
की जीवोॅ, ई तय नै जब तां
साथ रहेॅ साकीबाला,
डोॅर हेराबै के लगलोॅ छै
पावै रोॅ सुख के पीछू,
कहाँ मिलन रोॅ सुख दै पारै
मिलियो केॅ भी मधुशाला ।67
हमरोॅ पीयै लेॅ लैलेॅ छोॅ
की इत्ती टा ई हाला !
हमरा तोंय दिखाबै लेली
लैलेॅ छोॅ छिछला प्याला !
इतनी टा पीयै सें अच्छा
सागर के लै प्यास मरौं,
सिन्धु प्यास-रं हमरोॅ मजकि
बूंद भरी छै मधुशाला ।68
की बोलै छौµबचलोॅ नै छै
तोरोॅ बरतन में हाला,
की बोलै छौµअब नै चलतै
मादक प्याला रोॅ माला,
उपटै प्यास कटी टा पीवी
तेॅ बचलै नै पीयै लेॅ;
प्यास बुझाबै के नेतोॅ दै
प्यास बढ़ाबै मध्ुाशाला ।69
लिखलोॅ जत्तेॅ भागोॅ में बस
ओत्ते टा मिलथौं हाला,
लिखलोॅ भागोॅ में जेन्होॅ बस
होने टा पैबा प्याला,
कत्तो पटकोॅ हाथ-गोड़, पर
कुछुवो नै यैसें होथौं,
जे भागोॅ में लिखलोॅ तोरोॅ
होने मिलथौं मधुशाला ।70
करोॅ-करोॅ कंजूसी तोहें
हमरोॅ पीयै में हाला,
दै ला, दै ला हमरा तोहें
ई भंगा-फुट्टा प्याला,
हमरा सब्र यही पर लेकिन
तोहें पीछू पछतैबा;
जखनी नै रहबै तेॅ हमरा
खूब सुमिरतै मधुशाला ।71
मानोॅ-अपमानोॅ के ध्याने
छोड़ी देलां-लै हाला,
गौरव भुललौं हाथ में ऐलै
जहिया सें मिट्टी प्याला,
साकी केरोॅ नखरा भरलोॅ
झिड़की में अपमाने की,
दुनियाँ भर के ठोकर खैलां
तेॅ पैलेॅ छी मधुशाला ।72