मधुशाला / भाग 15 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
नाम अगर जों पूछै कोय्यो
कहियो बस पीयैवाला,
काम ढालबोॅ, ढलबैबोॅ बस
सब्भे केॅ मदिरा-प्याला,
जात अगर जों पूछै कोय्यो
कहियौ, बस दीवाना रोॅ,
धरम बतैयोॅ प्याला केरोॅ
माला जपबोॅ मधुशाला ।85
जानलकै जम आबैवाला
लै अपनोॅ करिया हाला,
पंडित अपनोॅ पोथी भुललै,
साधू तक भुललै माला,
भुललै पूजा-पाठ पुजारी
ज्ञानी सबटा ज्ञानोॅ केॅ,
मतर कहाँ भुललै मरियो केॅ
पीयैवाला मधुशाला ।86
अगर चलै छै जम लै हमरा
चलै दहौ लै केॅ हाला,
साथ चलेॅ दौ साकी केॅ भी
हाथोॅ में लै केॅ प्याला,
स्वर्ग-नरक जैठां जी चाहौं
लै जा हमरा वैठां ही;
सब जग्घोॅ तेॅ एक्के रं छै
साथ रहेॅ जों मधुशाला ।87
पीवोॅ पाप अगर जों छेकै
तेॅ तीनोµसाकीबाला,
रोज पिलाबैवाला प्याला,
जी पर जे उतरै हाला;
हमरोॅ साथें एकरो लै जा
न्याय यही बतलाबै छै,
कैदी जैठां हम्में, वै ठां
कैद रहेॅ ई मधुशाला ।88
साकी, केकरोॅ ठंडा होलै
पीवी केॅ मन के ज्वाला,
‘आरो, आरो’ के रटबोॅ केॅ
छोड़ै नै पीयैवाला,
कत्तेॅ-कत्तेॅ किंछा छोड़ै
जे कोय्यो जाबैवाला !
कत्तेॅ अरमानोॅ के कब्बर
बनी खड़ा छै मधुशाला ।89
जे हाला ठो चाहै छेलौं
पैलां नै हौ ठो हाला,
जे प्याला ठो माँगै छेलां
पैलां नै ऊ ठो प्याला,
जे साकी रोॅ पीछू हम्में
दीवाना, नै मिललै ऊ,
जेकरोॅ पीछू छेलां बेमत
पैलां नै ऊ मधुशाला ।90