मधुशाला / भाग 20 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
ई नै बुझोॅ कि पीलौं माहुर
यैलेॅ, नै मिललोॅ हाला,
तखनी खप्पर केॅ अपनैलौं
जखनी लै सकतौं प्याला;
सुझलै जरलोॅ हृदय जरैबोॅ
अपनैलौं श्मशानोॅ केॅ,
जखनी कि हमरोॅ गोड़ोॅ पर
लोटै छेलै मधुशाला ।115
कत्तेॅ लैलोॅ, पीलोॅ गेलै
ई मदिरालय में हाला,
अब तां टूटी चुकलै कत्तेॅ
मादक प्याला रोॅ माला,
कत्तेॅ साकी अपनोॅ-अपनोॅ
काम पुरैतैं दूर गेलै,
कत्तेॅ पीयै वाला ऐलै
मतर वही छै मधुशाला ।116
कत्तेॅ ठोरोॅ के यादोॅ केॅ
रखेॅ भला मादक हाला,
कत्तेॅ हाथोॅ के यादोॅ केॅ
रखेॅ भला पागल प्याला,
कत्तेॅ शक्लोॅ के यादोॅ केॅ
रखेॅ भला भोला साकी,
कत्तेॅ पीयैवाला में छै
एक एकल्ले मधुशाला ।117
दर-दर घूमै छेलियै जखनी
चिल्लैलेॅµहाला ! हाला !
कहाँ मिलै तखनी मदिरालय,
कहाँ मिलै हमरा प्याला,
मिलियो केॅ भी मिलबोॅ के सुख
नै छेलै ई किस्मत में,
आबेॅ जमी करी केॅ बैठलां
तेॅ घूमै छै मधुशाला ।118
हम्में मदिरालय रोॅ भीतर
हमरोॅ हाथोॅ में प्याला,
प्याला में मदिरालय केरोॅ
फोटू दै वाला हाला;
यही उधेड़बुनोॅ में हमरोॅ
जिनगी सौंसे ठो बितलै,
हम्में मधुशाला में छेलां
या हमरै में मधुशाला ।119
केकरा नै पीयै सें नाता,
केकरा नै भाबै प्याला;
ई दुनियाँ रोॅ मदिरालय में
किसिम-किसिम रोॅ छै हाला,
अपनोॅ-अपनोॅ ढंगोॅ सें सब
पीयै, पीबी माँतै छै;
एक्के सब रोॅ मादक साकी
एक्के सब रोॅ मधुशाला ।120