मधुशाला / भाग 4 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
बनेॅ पुजारी पे्रमी साकी
गंगाजल पावन हाला,
रहेॅ फेरतें बेछुट गति सें
मधु रोॅ प्याला के माला,
‘आरो लै ला, आरो लै ला’
यही मंत्रा रोॅ जाप करेॅ;
हम्में शिव रोॅ मूरत होलौं
मंदिर ठो ई मधुशाला । 19
बजलै नै मंदिर में घंटा
नै मूत्र्तिये पर माला,
गेलै अपनोॅ घोेॅर मुअज्जिन
दै केॅ मस्जिद में ताला
लुटलै सब्भे राज-खजाना
गिरलै गढ़ रोॅ दीवारो;
रहेॅ मुबारिक पीयैवाला
खुल्ले रहेॅ ई मधुशाला । 20
बड़ोॅ बड़ोॅ परिवारो मिटलै
एक्को नै कानैवाला,
वहू महल सुनशान बनै छै
जहाँ कि नाचै सुरबाला,
राज भले उलटेॅ राजा रोॅ
भाग्य-लक्ष्मियो नी सूतेॅ;
डटले रहतै पीयैवाला,
जमले रहतै मधुशाला । 21
मिटौक सब्भे, बनले रहतै
सुन्नर साकी, जम काला,
सूखौक सब रस, बनले रहतै
मतर हलाहल आ हाला,
धूमधाम आ चहल-पहल रोॅ
जग्घो सब सुनसान बनेॅ,
पर सद्धोखिन जगतै मरघट,
जगले रहतै मधुशाला । 22
बुरे सदा कहलैलै जग में
बाँका, मद-चंचल प्याला,
छैल-छबीला, रसिया साकी,
अलबेला पीयैवाला,
पटेॅ कहाँ सें, मधुशाला आ
जग रोॅ जोड़ी ठीक नै छै-
जग जर्जर तेॅ हर दिन, हर खिन
मतर नवेली मधुशाला । 23
बिना पिलें जे मधुशाला केॅ
बुरा कहै, ऊ मतवाला,
पीला पर तेॅ ओकरोॅ मुँह पर
पड़िये केॅ रहतै ताला,
दास-द्रोही ई दोनों में छै
जीत-सुरा रोॅ, प्याला रोॅ;
विश्वविजयिनी बनी केॅ जग में
ऐली हमरोॅ मधुशाला । 24