मधुशाला / भाग 5 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

हरे-भरे रहतै मदिरालय
जग पर पड़ेॅ भले पाला,
वहाँ मुहर्रम रोॅ तम छावेॅ
यहाँ होलिका रोॅ ज्वाला,
स्वर्गलोक सें सीधे ऐलै
धरती पर दुख की जानै;
पढ़ेेॅ मर्सिया दुनियाँ सौंसे
ईद मनाबै मधुशाला । 25

एक साल में एक्के दाफी
यहाँ जलै होली-ज्वाला,
एक्के दाफी बाजी लागै,
जलै दियो केरोॅ माला,
मजकि कोय दिन दुनियाँ वाला
आबी मदिरालय देखौ,
दिन केॅ होली रात दिवाली
रोज मनाबै मधुशाला । 26

के नै जानै, मनुख, बनी केॅ
ऐलोॅ छै पीयैवाला
अनचिन्हार के साकी सें, जे
पोसै दूध के दै प्याला
नर जिनगी पावी, पीवी केॅ
मस्त रहेॅ यै लेली ही
जग में आबी सबसें पहिलें
पैलकै वैनें मधुशाला । 27

बनले रहेॅ अंगूर लता ई
जैसें निकलै ई हाला,
बनले रहेॅ ऊ मिट्टी जैसें
खड़ा हुवै छै मधुप्याला,
बनले रहेॅ ऊ मदिर पियासो
जे तृप्ति नै जानै छै,
बनले रहेॅ ऊ पीयैवाला
बनले रहेॅ ई मधुशाला । 28

कुशल बुझोॅ हमरौ, जों रहतै
कुशल यहाँ साकीबाला,
मंगल आरो अमंगल समझेॅ
की मस्ती में मतवाला,
साथी, हमरोॅ खेम नै पूछोॅ
पूछोॅ तेॅ मधुशाला रोॅ,
कहलोॅ करोॅ नै ‘जैराम’ मिलथैं,
कहोॅ यही ‘जै मधुशाला’ । 29

सूर्य बनेॅ मधु के बेचबैया
सिन्धु बनेॅ घट, जल हाला,
मेघ बनी केॅ आबेॅ साकी
भुइयाँ मधु केरोॅ प्याला,
झड़ी लगाय केॅ बरसेॅ मदिरा
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम रं,
टूसोॅ, दुबड़ी बनी केॅ पीयौं,
बरसा के रितुµमधुशाला । 30

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