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मधुशाला / भाग 7 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

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उतरी ओकरोॅ जाय नशा तेॅ
आबै छै संझा बाला,
बड़ी पुरानोॅ बड़ी नशीला
ढाली जाय रोजे हाला,
जिनगी रोॅ संताप-शोक सब
एकरा पीथैं नाश हुऐ;
नीन माँतलोॅ मदलोभी पर
रहै जागथैं मधुशाला । 37

अंधकार मधु बेचबैया तेॅ
सुन्नर साकी शशिबाला,
किरिन-किरिन में जे छलकाबै
जाम जम्हाई रोॅ आला,
पीवी जेकरा झपकी लै छै
होश-हवासो केॅ छोड़ी-
ताराहै सन पीयैवाला
रात, जना कि मधुशाला । 38

कोनो दिश आँखी केॅ फेरौं
दिखलाबै छै बस हाला,
कोनो दिश ही नजर खिड़ाबौं
दिखलाबै छै बस प्याला,
कोनो दिश देखौं हमरा तेॅ
दिखलाबै छै बस साकी,
कोनो दिश देखौं, दिखलाबै
हमरा तेॅ बस मधुशाला । 39

साकी बनी केॅ मुरली ऐलै
हाथोॅ में लै केॅ प्याला,
जैमें छलकैतें आनलकै
अधर-सुधा-रस रोॅ हाला,
योगिराज करी संगत ओकरोॅ
नटवर नागर कहलैलै;
देखोॅ, केन्होॅ-केन्होॅ केॅ छै
नाच नचाबै मधुशाला । 40

मधु बेचबैया वादक बनलेॅ
आनलकै मीट्ठोॅ हाला,
बनी रागिनी साकी ऐलै
भरलेॅ तारा रोॅ प्याला,
बेचबैया रोॅ संकेतोॅ पर
धैलें लय, आलापोॅ में
पान कराबै सुनबैया केॅ;
झंकृत वीणा मधुशाला । 41

चित्राकार बनी साकी आबै
लै केॅ कूची रोॅ प्याला,
जैमें भरलें पान कराबै
ढेरे रंग-रस के हाला,
मन-तस्वीर पिवी केॅ जकरा
रंग-बिरंगा रं होबै,
चित्रापटी पर नाच करै छै
एक मनोहर मधुशाला । 42