मधुशाला / भाग 9 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
बजलै तुरही आर नमाजी
भुललै सब अल्लाताला,
गिरलै गाज सुरै सें सटलोॅ
मगन छिलै पीयैवाला,
शेख, बुरा नै मानोॅ ई तेॅ
साफ कहै छी मस्जिद केॅ
युग-युग तक सिखलैतै आभी
ध्यान लगैबोॅ मधुशाला । 49
मुसलमान आ हिन्दू दू छै
एक मतर, हुनकोॅ प्याला,
एक मतर हुनकोॅ मदिरालय
एक मतर, हुनकोॅ हाला,
जब तक एक रहै नै दोनों
मस्जिद-मन्दिर में गेलोॅ;
वैर बढ़ाबै मस्जिद-मन्दिर
मेल कराबै मधुशाला । 50
कोय्यो होवेॅ शेख-नमाजी
या पंडित जपतें माला,
वैर-भाव कत्तो ऊ होएॅ
मदिरा सें रक्खैवाला,
एक बार बस मधुशाला रोॅ
आगू सें होय केॅ निकलौ,
देखांै कना नै थामी लै छै
दामन ओकरोॅ मधुशाला । 51
आरो रस में स्वाद तभै तक
दूर जभै तक छै हाला,
इतराबौ सब पात्रा, नै जबतक
आगू आबै छै प्याला
पूजा कै लौ शेख-पुजारी
तब तां मस्जिद-मन्निर में,
घूंघट रोॅ पट खोली जब तांय
झाँकै नै छै मधुशाला । 52
आय करौ परहेज ई दुनियाँ
कल तेॅ पीनै छै हाला,
आय भले इन्कार करौ जग
कल तेॅ पीनै छै प्याला,
होएॅ दौ पैदा दुनियाँ में
मद रोॅ कोय महमूद फनू
जहाँ अभी छै मन्दिर-मस्जिद
वहाँ दिखैतै मधुशाला । 53
जग्गोॅ रोॅ आगिन-रं धधकै
मधु के भट्टी रोॅ ज्वाला,
रिखि-रं ध्यान लगैनें सब्भे
बैठलोॅ छै पीयैवाला,
मुनि-कन्या-रं मधुघट लै केॅ
घूमै छै साकीबाला,
कोय तपोवन सें की कम छै
हमरोॅ पावन मधुशाला । 54