Last modified on 27 मई 2010, at 19:17

मधु के घन से, मंद पवन से / सुमित्रानंदन पंत

मधु के घन से, मंद पवन से
गंध उच्छ्वसित अब मधु कानन,
निज मर्माहत मृदु उर का क्षत
विस्मृति से तू भर ले कुछ क्षण!
सघन कुंज तल छाया शीतल,
बहती मंथर धारा कल कल,
फलक ताकता ऊपर अपलक,
आज धरा यौवन से चंचल!
मदिरा पी रे, धीरे धीरे
साक़ी के अधरों की कोमल,
उसे याद कर जिसकी रज पर
आज अंकुरित नव दूर्वादल!