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मधु मुस्कान बखेरी होगी / उमेश कुमार राठी
Kavita Kosh से
मधु मुस्कान बखेरी होगी
दिल में मित्र बसाया होगा
कर शृंगार मिलन बेला में
मोंगर इत्र लगाया होगा
चुनके शब्द पिरोये होंगे
भाव सँजोये होंगे निर्मल
जब अनुभूति उड़ेली होगी
आखर थिरके होंगे आँचल
अधरों की पाँखुर से छूकर
प्रेमिल पत्र सजाया होगा
मधु मुस्कान बखेरी होगी
दिल में मित्र बसाया होगा
धूप उतरती घर आँगन में
रूप रुपहला लगता दामन
जब भी नूर निहारा जाता
स्वप्न दिखाने लगता दर्पण
चंदन का आलेप लगाके
आनन चित्र लजाया होगा
मधु मुस्कान बखेरी होगी
दिल में मित्र बसाया होगा
जागी होगी रति अभिलाषा
सुनके प्यार पयोदित भाषा
मीत अभीप्सा जैसी होती
गढ़ जाती वैसी परिभाषा
पेंग भरी होगी बाँहों में
नूतन सत्र चलाया होगा
मधु मुस्कान बखेरी होगी
दिल में मित्र बसाया होगा