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मनमोहन का पिता माता से मिलाप / प्रेम प्रगास / धरनीदास

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चौपाई:-

वहुरि कटक आयो सनिधाना। राजा रानी चलु परधाना॥
छोट मोट नर कोइ न रहाई। कुंअर दरस करवे चलु घाई॥
दर्शक जन कर संगम जाहां। सेना सबै उतारयो तांहा॥
मातु पिता पग परसु कुमारा। चरणरेणु शिर ऊपर सारा॥
सासु चरन दूवो वहु लागी। पायउ आशिष सदा सोहागी॥
पुनि जत लोग दरसको आये। प्रेमयुक्त सब कंठ लगाये॥

विश्राम:-

यहि विधि राउर आपने, मनमोहन चलि आन।
कुंअरि दुवो अन्तःपुरहिं, धरनी जन सुख पाव॥255॥

चौपाई:-

जो जन कुंअरहिं मिल आवहि। प्रेमहिं अंक माल पहिरावहि॥
साथ कुंअर के जो जन आये। सब कंह भोजन वास दिवाये॥
बहुविधि राउर वाजु बधाई। द्रव्य अनेक दुखित जन पाई॥
ब्राह्मण गांव वृत्ति कत पावहिं। होहिं निहाल भाट व्रह्मावहिँ॥
कीर्तन कथा बहुत परकारा। जंह तंह गावहिं मंगलचारा॥

विश्राम:-

मनमोहन आनन्देऊ, चलि अन्तःपुर जाय।
समाधान सबको कियो, आधी रैना विताय॥256॥

चौपाई:-

परगट परमेश्वर करु दाया। दुख मेटा सुख सत लखाया॥
भयउ विहान कुंअर वहराई। संगिन के घर घर चलि आई॥
सबके मात पिता पंह पाऊ। मोकैह जानहु पुत्र सुभाऊ॥
अब जौं लगि प्रभु मोहि जियावे। करहु जगत सुख जो मन भावे॥
सकल सेन जो संग सिधाये। अमित अनंद तिनहि उर आये॥
तोहरे सुनसंग हम सुख पाऊ। मो कंह क्षमा करहु अन्याऊ॥

विश्राम:-

साहस ते सिधि पाइये, जो मन निश्चय होय।
विनु साहस धरनी कहै, सिद्धि न पावै कोय॥257॥