मनमोहन का साथियों को छोड़ समुद्रलंघन / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
सब मिलि हर्षित आशिष दयऊ। अंकमाल पुनि सबते कियऊ॥
ताक्षण सुमिरयो सिरजनहारा। गुरु प्रताप शिर ऊपर सारा॥
मन मोहन मुख गोटी डारा। कर ऊपर मैना बैठारा॥
पवन वेग उडि चलो कुमारा। सुमिरत स्वामी अपरंपारा॥
क्षेम कुशल पुनि अमरे पारा। पहुंचे जाय कृपा कर्त्तारा॥
गोटी मुखते धरयो उतारी। वैठे उतरि कुंअर ओ सारी॥
विश्राम:-
दंड जारि मैना सहित, सुमिरो केशवराय।
अब लगि तुम निर्वाहेऊ, आगे तुमहि सहाय॥111॥
चौपाई:-
अति निश्चय मन भीतर राखी। विश्वम्भरकी अस्तुति भाषी॥
कर्त्ता हर्त्ता भर्त्ता स्वामी। घट घट आपुह अन्तर्यामी॥
तुमरी कृपा महोदधि होई। तारन तरन अवर नहि कोई॥
मैं प्रभुनाम धरयों अवलम्बू। तेहिते उतरयों सागर-अम्बू॥
सकल वात प्रभु तुमरे थोरी। चितवन चरणकमल कर जोरी॥
विश्राम:-
अविगति अगम अगोचर, अलख पुरुष कत्तरि।
धरनीश्वर की अस्तुती, कोउ न पायो पार॥112॥