मनमोहन श्याम सलोना जब, मेरे सपनों में आये
झुक जायें मेरे दो नैना, वो मन्द मन्द मुसकाये
रवि जब जाता अस्ताचल को, सागर में लेता डुबकी
पंछी जा कर निज नीड़ों में, पंखों में शीश छुपाये
जब दूर क्षितिज के छोरों पर, मिलते हैं अम्बर धरती
उस मधुर मिलन की खुशबू से, जगती सारी भर जाये
सब खिले फूल मुरझा जाते, दिनकर के ढलते ढलते
रह जाती खुशबू बाकी मन, को रहती सदा लुभाये
आशा बस एक मिलन की है, सुलगी चिनगारी जैसी
पर बड़े यत्न से उस को हूँ, मैं जग से सदा छुपाये
पुतली नयनों की पलँग बने, पलकों के परदे डालूँ
दृग की राहों से अंतर में, जब श्याम सलोना आये
कब बन पायेगा मनमोहन, मम स्वप्नों का अनुगामी
इस जीवन मे अब क्या जाने, वो दिन आये ना आये