भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनमोहन से बस इतना ही कहना है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनमोहन से बस इतना ही कहना है।
हम को उन के ही चरणों में रहना है॥

याद बसी घनश्याम कन्हैया कि मन में
उन की ही करुणा-धारा में बहना है॥

कच्चे ईंटों से जिस घर की नींव बनी
एक दिवस निश्चय ही उसको ढहना है॥

जीवन जैसे एक पहेली अनजानी
जितने भी हों कष्ट सभी को सहना है॥

गिरिधर याद तुम्हारी है हर पल आती
आते तुम न कभी यह मात्र उलहना है॥

नभ में घिरते बादल नयनों में सावन
जीवन भर यों अग्नि विरह में दहना है॥

श्याम सलोना आन बसा जब नयनों में
तन का वह शृंगार हृदय का गहना है॥