भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मनमोहन / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
नयन-कुहाट कपाट लगो, धरनी सुनि श्रौन पुकार पुकारो।
नाक सुवास कुवास न चाहत, जीभ घने वकवादन हारो॥
हाथ नहीं हथियार छुवै, चुप चरनन हूँ चलनार विसारो।
इन्द्रिय अधोमुखि औंधि रही, मन मोहि रहो मनमोहन प्यारो॥22॥