मनमोहन / शब्द प्रकाश / धरनीदास

नयन-कुहाट कपाट लगो, धरनी सुनि श्रौन पुकार पुकारो।
नाक सुवास कुवास न चाहत, जीभ घने वकवादन हारो॥
हाथ नहीं हथियार छुवै, चुप चरनन हूँ चलनार विसारो।
इन्द्रिय अधोमुखि औंधि रही, मन मोहि रहो मनमोहन प्यारो॥22॥

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